rajeshgauri
@RajeshGaurii
कविताएं मेरी आत्मा का रस है और इस हृदय भूमि पर मैं नित श्रद्धा पूर्वक नंगें पांव चलता हूं (साहित्य प्रेमी)
एक अनहद #राग प्रेम का भीतर ही भीतर गाता है प्रत्यक्ष नहीं कोई यद्यपि अंतस् में कौन ठहर जाने तेरा प्रतिबिंब बनाता है यह सांध्य बेला की गोधूली कौन हथेली मध्य धरकर बैठा ढूँढा बहुत यद्यपि कौन कहाँ छुपा कोई मुझे कहीं नजर नहीं आता है - राजेश गौरी 🍁 #Rajeshgauri #Kavita250

मैंने नम्रतापूर्ण पूजा की चटक चाँदनी में दीप जलाया सिंदूरी आभा के मध्य बैठकर शिवशक्ति के ध्यान में मग्न हो गई। कितना भव्य अनुभूति व आस पास भी भव्यता शोभायमान हो रही उर-मन आत्म भी... @soul_reveals @sameer_thepoet @_PaaTi
इस बार तुम फिर आना वही पुरानी चाँदी की पायल पहन कर जिसकी झंकार में तुम अपनी सुध बुध खो देती हो तुमने कहा था ना यह पायल माँ की निशानी है इसमें माँ बसती है सुनो #पायल को छूकर तीज के उत्सव पर तुम्हें झूला झूलते हुए इस बार माँ से… मैं तुम्हें माँगना चाहता हूँ #Rajeshgauri #बज़्म

———— ————— आँसू वह गंगा है… जिसमें मनुष्य और ईश्वर दोनों पवित्र होते हैं … —————— ———— #हर_हर_महादेव_शिव_शंभू_ॐ 💐❣️🙏🏼 #सावन💐❣️🙏🏼🙏🏼 - राजेश गौरी 🌻 #rajeshgauri

जीवन की धुन कभी तू भी सुन रख हौसला आसमाँ में उड़ने का फैला अपने पंख सपने नये तू बुन अपने ही रोकेंगे तुझको हर बार टोकेंगे तुझको रख कर ख़ुद पे यक़ीन राह अपनी तू चुन बज रही है जो कानों में तेरे अपने दिल की वो धुन सुन कभी तू भी सुन… #Kavita250
वाह👌👌 ये जमीं पर बिखरी गुलों की फिजाएँ मन को बाँधती है... मीठे स्वप्न-ऋचाएँ।
.. मां के आलिंगन में बढ़ते बच्चे न रह पाते उनसे क्षण भर दूर, बड़े हो जाने पर जाने कैसे हो जाते हैं निष्ठुर मांओं को छोड़ आते हैं जंगलों में स्वयं से बहुत दूर... . #छोटा_दरवाज़ा #निर्दयी
प्रेम की फुहार है बारिश हृदय की अलौकिक अनुभूतियाँ वायु में गूँजती है श्वांस की हर बयार नैनों में उमड़ पड़ती है...प्रेम बदरिया सी धड़कने इठलाती हुई छेड़ देती है ...मेघ-मल्हार की रागिनी और अंतर्मन प्रेम की सौंधी महक पहन देह-धरा खिल उठती है हरश्रृंगार की भाँति..परिपूर्ण सावन में।
बारिश पर कुछ लिखें।
आत्मिक प्रेम या दैहिक प्रेम किसे कहेंगे सच्चा और पवित्र प्रेम…? बिना देह के आत्मा कहां होती है आत्मा इसी देह में ही तो रहती है फिर दोनों को अलग क्यों किया जाता है आत्मा के बिना देह का कोई अस्तित्व नहीं और देह के बिना आत्मा का कोई परिचय नहीं प्रेम अपने आप में इतना पवित्र…
आज फिर.. यादों के झरोखे से मीठे स्वप्न झर रहे हैं जैसे क्षितिज को नापते हों हमारे पाँव और हम नदी पर चल रहे हैं कल… जैसे स्वप्न रखें थे तुम ने दिल की किताब में आज भी सुरक्षित वो सूखे गुलाब वैसे ही… प्यासे हों जैसे… धरती गर्म के भीतर बीज मेघों की प्रतीक्षा में #Rajeshgauri

आज फिर दिल ले चला उन पुरानी गलियों में जहां तुम्हारे कदमों की चाप आज भी गूंजती है. तुम्हारी चिट्ठियों की महक, तुम्हारी चाय की तलब आज भी वैसे हीं, तुम्हारे सिगरेट का धुआं, लगता है जैसे बादलों के साथ मिल कर आज बरस रहा है जम के मानों अपना गुस्सा दिखा रहा हो कि तुमने ख़त का जबाब…
धीरे-धीरे रात ने छेड़ा कोई राग, और खामोशी सुन रही सुर की हर बात! चाँद खिड़की से भीतर आया, जैसे कोई गीत धीरे से दिल में उतर आया! पलकों पर उमड़े नींद के साज़, कुछ अलसाई, धीमी मधुर आवाज़! स्वप्नों के पंछी सुरों की शाख पर और मन किसी अनकहे गीत में धीरे-धीरे डूबने लगा है। #kavita250
कौन है जो निर्मल नदी सा मन की गंगा में बहता है भस्मीभूत तन मुंड माल चढ़ाकर चंदन वन सा सुगंधित रहता है वही एक जिसे वेद सत्यम शिवम् सुंदरम् कहता है #हर__हर__महादेव 💐💐🙏🏼 #महाशिवरात्रि❣️ 💐💐🙏🏼 राजेश गौरी #Rajeshgauri

आषाढ़ की झुलसती दुपहरी में कुछ यादें यूं ही चली आई मन के दहलीज़ तक और थम गई वही थक-थकी सी... शाम के गहराते हीं झर गई टूटे हुए फूल की पंखुड़ियों की तरह और मैं अनमनी सी बैठी बस देखती रही यादों को झरते हुए... ~ बिमला वर्मा🌻
…और एक हाथ छूट गया रह गई शेष मुट्ठी भर यादें दिल के किसी कोने में फ़ोन की गैलरी में सहेज कर रखी कुछ तस्वीरों में व्हाट्सएप पर की गई जाने कितनी सारी बातों में ज़िंदगी के सफर में थोड़ी दूर ही सही साथ पकड़ी गई उन उँगलियों के पोरों में और इस पल बहते इन आँसुओं में…
क्या चिंता मुझे जब मेरा रखवाला अंतर्यामी है काल का भय नहीं जब भक्ति मेरी शिव पथगामी है #सावन 💐💐🙏🏼 #हर_हर_महादेव_शिव_शंभू_ॐ 💐🙏🏼 #Rajeshgauri

“मेरी नज़र में रहने के लिए भी तेरा नज़र में रहना कहाँ ज़रूरी है तेरा इश्क़ इबादत है खुदा की अब तू ही सनम खुदा का घर है ,, #Rajeshgauri
तेरे होने में कुछ इस कदर है …मेरा होना गर तू कभी नज़र न आए तो मुश्किल होता है …मेरा साँस लेना
मेघों के आह्वाहन पर उमड़ता वेदना का उद्वेग निर्बल भुजाओं से भला कब तक थामता ह्रदय क्रंदन पर दृग जल की बूंदें बरस पड़ी और मैं… तुम्हारी स्नेहिल स्मृतियों का आलिंगन कर फूट पड़ा मेघों की भाँति…. - राजेश गौरी 🍁 #rajeshgauri #Kavita250