मधुलिका…“सुकून”
@_Sukoon
दर्द का आख़िरी पड़ाव मौन होता है…!!🖤
वे लड़के जो कम उम्र मे अपनी ज़िम्मेदारियो से प्रेम कर लेते है किसी और चीज़ से चाह कर भी प्रेम नही कर पाते कभी पूछने पर भी वो नही बता पाते अपना प्रिय भोजन अपना प्रिय रंग अपने जीवन का प्रिय क्षण एवं अपने बचपन की सबसे प्रिय याद भी शायद वे भुला चुके होते हैं ख़ुद के अस्तित्व को भी
उदासियाँ वजह बनती है मन के ख़ालीपन की… और दुख उस ख़ाली जगह को दर्द से पूरा भरने की…
ख़ुशियों की दस्तक देती सुबह चौखट पर तेरे आने की आहट हुई है Reason to smile ❤️
जो सबका ख़्याल रखते हैं…सबकी परवाह करते हैं हमेशा मजबूत दिखते हैं ना..वो दरअसल भीतर ही भीतर खुद से लड़ते रहते हैं डरते रहते हैं कि कहीं किसी रोज़ टूट के बिखर न जाएँ मगर फिर भी ख़ुद को ख़ुद से ही सँभालते हैं और मज़बूत होने की कोशिश में लगे रहते हैं…क्योंकि उनको पता होता है कि…
... दुःख हमारे जीवन में वैद्य की तरह होते हैं , जो समय -समय पर हमारे चेतना की चिकित्सा करने आते हैं। ~ चिरई जी के सुविचार 🕊️
मनुष्य, जब तक प्रेम के पुल पर खड़ा रहता है पुल के नीचे से बहती दुःख की नदी भी सुंदर दिखती है।
यात्राएं करना हमेसा सुखद न होता कभी कभी हम किसी की स्मृतियां इतना दुःख देती है की उसकी पीड़ा को कम करने शांत प्रकृति के मध्य जाते किन्तु वहां अत्यधिक दुःख की अनुभूति होती स्मृतियां और ज्यादा हम पर हावी होती अंततः सिर्फ दुःख ही बचता है हमारे पास... 🖤🖤
स्वयं से स्वयं का पुनर्जन्म : आत्म सृजन भोर होने को थी मगर जिष्णु और कौशिकी दोनों ही एक दूसरे से बातें कर रहे थे क्योंकि कौशिकी जानती थी कि सूरज की लालिमा जैसे ही मणि का रूप लेगी वैसे ही जिष्णु दूरदेश चला जायेगा,अतः जितना भी वक्त है उतना ही उसे निहार ले।
ज़रा फिर से हिसाब करके देखो हिसाब करने वालों क्या मालूम हिसाब से ज्यादा ज्यादती हो चुकी हो तुम्हारे खाते में थोड़ी गड़बड़ी हो!
चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं उन सारी जगहों पर जहाँ बोलना ज़रूरी था बढ़ती जा रही हैं वे जैसे बढ़ते बाल जैसे बढ़ते हैं नाख़ून और आश्चर्य कि किसी को वह गड़ती तक नहीं केदारनाथ सिंह
उतना कभी किसी को नहीं मिलता जितने की चाह होती है लेकिन उतना हर बार बच जाता है जितने के साथ जीवन जिया जा सके।
तेरे तोले भर नमक पर... मेरे तोले भर ज़ेवर कुर्बान... #सावन #इश्क़
-- तुम्हारे पास जाने कौन होगा हमारे पास अब भी तुम ही तुम हो -- अम्बष्ठ
यूँ तो सँवर जाती हूँ अक्सर उसकी बातों से ही मैं फिर भी कुछ श्रृंगार उसके नाम का चाहती हूँ वो चाहता है लेना मेरे लिए झुमके, कंगन, बिंदी, काजल मगर कहता है तुम्हें ये सब पहना देख मेरे दिल पर भूकंप बाद में आएगा पर ये सब तुम तक पहुँचाने में ही महाभारत छिड़ जाएगा ~कीर्ति चन्द्रा…
मन तो अधिक मज़बूत होता है तन का क्या है, एक नश्वर काया तन मिल भी जाए तो क्या होता हैं मन का मिलना ही कहलायेगा पाया
उम्मीदों से बंधा एक जिद्दी परिंदा है इंसान जो घायल भी उम्मीदों से है और ज़िंदा भी उम्मीदों पर है