काव्य कुटीर
@KavyaKutir
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हम तो पेड़ की पत्तियों के समान है , और परिवार पेड़ की जड़ के समान हैं।

यह कशिश मित्तल हैं. यह एक IAS अधिकारी थे, लेकिन इन्होंने अब गायकी के लिए अपना पद छोड़ दिया है. सुनिए इनके सुर को और फील कीजिए. वाकई बहुत कमाल गा रहे हैं...😍😍
🤌👌🩷
मछलियों को लगता था के जैसे वे तड़पती हैं पानी के लिए पानी भी उनके लिए वैसा ही तड़पता होगा। - नरेश सक्सेना 🌷
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मछलियों को लगता था के जैसे वे तड़पती हैं पानी के लिए पानी भी उनके लिए वैसा ही तड़पता होगा। - नरेश सक्सेना 🌷
बेहद गहरी बात
मछलियों को लगता था के जैसे वे तड़पती हैं पानी के लिए पानी भी उनके लिए वैसा ही तड़पता होगा। - नरेश सक्सेना 🌷
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मछलियों को लगता था के जैसे वे तड़पती हैं पानी के लिए पानी भी उनके लिए वैसा ही तड़पता होगा। - नरेश सक्सेना 🌷
Absolute saying about relation between fish and water.
मछलियों को लगता था के जैसे वे तड़पती हैं पानी के लिए पानी भी उनके लिए वैसा ही तड़पता होगा। - नरेश सक्सेना 🌷
कच्ची आकांक्षाओं को प्रेम कहना छोड़ दो, ओस की एक बूंद बनने में रात भर का तजुर्बा लगता है। - अंशुल अग्रवाल🌷
रस्मों की ज़ंजीर भी तोड़ी जा सकती है तेरी खातिर दुनिया छोड़ी जा सकती है! उसको भूलकर मुझको ये मालूम हुआ है, आदत कैसी भी हो छोड़ी जा सकती है!!
अपने दुःख के समय को रेत पर लिखो और अपने सुख के समय को पत्थर पर... -जॉर्ज बर्नार्ड शॉ 🌷

#काव्य - भावों को दे दृष्टि, शब्दों की शक्ति, से विचारों की अभिव्यक्ति, काव्य करे समर्थ, जहां अन्य विधाएँ हैं, असमर्थ (अक्षम) ...............!! -छवि अनुपम ✍️ #छविअनुपम #chavianupam #Kavya #काव्य #Hindi #हिंदी
ए रात जरा थम कर गुजर, मुदत्तों बाद आज चाहत की "बारिश" हो रही है...! - गुंजन शिशिर🌷

जो मानव अंतर्मन से हार गया मान लिया खुद को अक्षम। आंतरिक शक्ति भी विफल होती जाती है जो स्वयं को न समझें सक्षम।। ~अंकिता🍁 @KavyaKutir
आज का शब्द "अयोग्य/ अक्षम" अपने विचार कमेंट कीजिए 😊
कभी कभी जिस चीज़ को जितना समेटना चाहो, वह उतनी ही तेजी से बिखरती चली जाती है...💯💯 #Fact
हमेशा, हर कदम पर "अयोग्य" ही रहे तुम बस! थामे रखा झूठ का हाथ चंद मनचले चमचों का साथ। जिम्मेदारियों से सदा ही भागते रहे हो तुम सच क्या है कभी जाना नही छलावों के लिए ही जागते रहे हो तुम। हाँ! तुम एक खोखले इंसान बस! "अयोग्यता "की पहचान। निधि "मानसिंह" ✍️ काव्य कुटीर समूह 💐
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सब के तानो में अयोग्य था मैं सब की बातों में अक्षम था मैं उठ गया महफ़िल से लिखने एक नई कहानी बदलने मेरी तकदीर बदलने मेरी रवानी रात को दिन समझ करी खूब मेहनत आज वो मुकाम है बदल गई किश्मत
काश! ना लौटे फिर से वो बुरा दौर… जिससें होकर गुजरी हूँ लौहे की तरह भट्टी में तपकर निखरी हूँ। निधि "मानसिंह" ✍️