🌺 शिव 🌺
@Shiv4477
“The mind will not remember what exactly happened. But the heart will always remember the feeling.”
चूल्हे बुझ जाते,घर में जाले पड़ जाते हैं जरूरतमंद के पैरों में छाले पड़ जाते हैं गुरबत में क़िस्मत भी साथ छोड़ देती है चंद रोटी के टुकड़ों के लाले पड़ जाते हैं कड़ी धूप खाता है और पीता है पसीना कुछ इस तरह,पेट में निवाले पड़ जाते हैं रात भर वो बेचता है अपने बदन का दर्द…

उदित प्रखर तेज दिनकर है ऊर्जित धरा का कण कण है जीवनदायिनी मलय पवन है जल-अणुओं से यह जीवन है तरु से आच्छादित है संसार उस ईश्वर का है सब उपकार वह जो करुणा का सागर है उसका आशीर्वाद निरन्तर है प्रभु की महिमा का गान करें ईश्वर सबका कल्याण करें..✍️ सुप्रभात ✨ #बज़्म

तुम्हें कविता में कैसे लिखूं तुम्हे शब्दों में कैसे ढालूँ तुम्हें गजल में कैसे गुनगुनाऊं तुम्हें सच में कैसे पा लूं....? #बज़्म
तुम्हें कविता में मैं लिख दूं तुम्हें गजल में गुनगुना दूं, शेरों की ये तमन्ना है कि मैं महफ़िल में, तुम्हे गा दूं ...!! #बज़्म
ना कंगन ना काजल, ना मेहंदी , ना पाजेब पहना ना ही कभी कोई #श्रृंगार किया ना पहना लाल जोङा हमने हर रस्म रिवाज़ को नाकार दिया तेरी जुदाई से किया गठबंधन तेरे गम से हमने ब्याह किया 🌺 #सहर । #बज़्म
#तीज नववधु सी सजी है प्रकृति करके आई है सोलह श्रृंगार कजरी तीज अति सुहावन बरसे है सावन की रसधार मेघों का गर्जन तर्जन है हैं काली घटाएं अंबर में रिमझिम बूंदे बरस रहीं संगीतों के मृदु स्वर में कामदेव,अति उत्साहित हैं सोये यौवन ने ली अंगड़ाई गांव गांव कजरी के गीतो ने…

#हरि_कर_दो_तुम_शंखनाद ---------------------- हे हरि कर दो तुम शंखनाद शिव लेकर जीता है विषाद मेरा मुझमें वह अंश कहां ढूंढूं जिसको मैं यहां वहां नियति तू तो कुलिश-कठोर बोल उसे ढूंढूं किस ओर क्या है जो मैं त्रिलोकेश्वर हूँ हे सती,मैं शिव, तुम बिन शव हूँ.... मेरे नैन सजल हैं…

रंजिशे इतनी ही हो कि गुंजाइश रहे और इब्तिदा फिर से हो सके दोस्ती की, कांटे भी गुलाबों की हिफाजत किया करते हैं वरना, देखभाल कौन करता महजबीं कि..!!
आओ ना, स्वाति नक्षत्र की बूंदों की तरह कब तक, तरसाओगे मुझे..!! आसमान में टकटकी लगाए कब से तुम्हे देख रहा हूँ......!! किसी चातक की तरह, प्यासा ना रह जाऊं, इस बरस भी..!! 🥀 आओ ना मेरे पतझड़ को नववसन्त दो, मुझे पूर्णविराम दो, मेरे प्रेम को अपना नाम दो.......!!🪸 तुम्हे महसूस करता…

मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि वह जुड़ता है रिश्तों से, लोगों से, स्मृतियों से, और उम्मीदों से। हमारा जीवन एक लंबे रिश्तों के सफ़र की तरह होता है, जिसमें हम हर पड़ाव पर किसी न किसी के साथ चलने लगते हैं। कभी दोस्त, कभी प्रेमी, कभी परिवार, कभी सहकर्मी , हर किसी से एक नया बंधन,…
#बज़्म_काव्य_मंच में आज 26/7/2025 का दैनिक शब्द - तीज उत्सव :- #श्रृंगार कवितायें, कहानियाँ, शेर, ग़ज़ल, गीत, नज़्म कुछ भी लिखा जा सकता है , #बज़्म 👈 लगाना अनिवार्य है ।।
भाव मेरे प्रेम के केंद्रित हो जाते हैं ब्रह्मांड पर, और वह ब्रह्मांड झुमका है उसका...!! #बज़्म
ना लो धैर्य की परीक्षा मेरी मैं अब अधीर हो चुका हूँ तुम्हारे प्रेम के विरह में मैं नयनों का नीर हो चुका हूँ स्मृतियां तुम्हारी मुझे काट खाने लगी हैं कब आओगे तुम मुझे रुलाने लगी हैं इतने निष्ठुर तो ना थे जो विस्मृत किये जा रहे राह तकते हैं ये नयन बताओ कब आ रहे पीड़ा असह्य…

तुम्ही पुरुष की शक्ति प्रभा प्रकृति का श्रृंगार तुम्ही हो, हो तुम्ही प्रेम की पराकाष्ठा यह प्रेममय संसार तुम्ही हो, तुम्ही वसंत की मधुर घड़ी तुम्ही प्रेम की पावन आभा, जीवनदायिनी मलय पवन मरु जीवन का उपहार तुम्ही हो , तुम्ही जग की छटा मनोहर ब्रह्म की रचना अतिसुन्दर, पवित्र…

मेरी कुछ भूली बिसरी कविताएं बाट जोहती रहेंगी उन श्रोताओं की, जो कभी कविता नहीं सुनते हैं...!! लेकिन पीड़ा के श्वेत कमल में भोर के ओस की बूंदों सदृश मोती उनके नयनों से झरते हैं...!! मैं उनको चाहता हूं लिखना कि जो पढ़ने के काबिल नहीं, जिनके दृष्टांत मेरी लेखनी में जगह ढूंढते…

ख़बीश, मुझसे परहेज किया करो तुम, मैं एक गुलाब हूं,कांटे भी बेहिसाब रखता हूं ...!! बेजमीरों के लिए बहुत खराब हूं मैं, वरना लोग कहते हैं, आफताब हूं मैं...!! #बज़्म

कुछ जमीं क्या नाप ली, खुद को सिकंदर समझ बैठा, बड़ी कशमकश में हूं कि दरिया समंदर को आइना दिखाता है...!! ✍️ #बज़्म

तू मेरी कविता पढ़ ले मैं तेरा चेहरा पढ़ लूं, रूपनगर की राजकुमारी आ तुझे कविता में गढ़ लूं मैं प्रेमनगर का जादूगर तुम यौवन की महारानी, मैं बादल आवारा ठहरा तू सावन का शीतल पानी जो तुम पर हो संभावित उन विपदाओं से लड़ लूं रूपनगर की राजकुमारी आ तुझे कविता में गढ़ लूं शब्द शब्द…

आँचल में जो चेहरा है जमीं पर चाँद है जैसे...... चाँद से रौशन है ये गुलशन गुलिस्तां आबाद है जैसे..... सुगन्धित है और हरिप्रिया सी पुष्प पारिजात है जैसे..... मुखड़ा है चन्द्र सुशोभित गमों से आजाद है जैसे...... प्रिये बनकर मेरी छाया, लगे मेरे ही पास है जैसे......✍️ #बज़्म