Prabhat Ranjan
@prabhatranjann
writer of 'paltoo bohemian(पालतू बोहेमियन)', a widely appreciated memoir of manohar shyam joshi, moderator of http://jankipul.com and translator
यूँ बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ कोई देखे तो ये समझे कि पिए बैठा हूँ आख़िरी नाव न आई तो कहाँ जाऊँगा शाम से पार उतरने के लिए बैठा हूँ मुझ को मालूम है सच ज़हर लगे है सब को बोल सकता हूँ मगर होंट सिए बैठा हूँ लोग भी अब मिरे दरवाज़े पे कम आते हैं मैं भी कुछ सोच के ज़ंजीर…
कुछ साल पहले महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की पत्रिका 'बहुवचन' का एक अंक नामवर सिंह पर एकाग्र आया था। उस अंक में विश्वनाथ त्रिपाठी का लेख आया था जिसमें विश्वनाथ त्रिपाठी ने नामवर जी की सिखाई कुछ सामान्य जीवन आचरण की बातों का जिक्र किया था। आज फिर याद आया: "जब कुछ…
देख लेते हो मोहब्बत से यही काफ़ी है दिल धड़कता है सुहूलत से यही काफ़ी है मुद्दतों से नहीं देखा तिरा जल्वा लेकिन याद आ जाते हो शिद्दत से यही काफ़ी है जो भी रस्ते में गुज़रता है मिरे पहलू से देखता है तिरी निस्बत से यही काफ़ी है मेरे आँगन में उतरता नहीं वो चाँद कभी देख…
कुत्तों और इंसानों की दोस्ती की कहानी सभ्यता के आरम्भ से ही चली आ रही है। बिहार सरकार ने कुत्ते को नागरिकता देकर ऐतिहासिक काम किया है। अन्य राज्यों को भी सीख लेनी चाहिए।

'शैशव की स्मृतियों में एक विचित्रता है। जब हमारी भावप्रवणता गम्भीर और प्रशान्त होती है, तब अतीत की रेखाएँ कुहरे में से स्पष्ट होती हुई वस्तुओं के समान अनायास ही स्पष्ट-से-स्पष्टतर होने लगती हैं; पर जिस समय हम तर्क से उनकी उपयोगिता सिद्ध करके हम स्मरण करने बैठते हैं, उस समय पत्थर…
हाल उस का तिरे चेहरे पे लिखा लगता है वो जो चुप-चाप खड़ा है तिरा क्या लगता है यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है यूँ तो हर चीज़ सलामत है मिरी दुनिया में इक तअल्लुक़ है कि जो टूटा हुआ लगता है जाने मैं कौन सी पस्ती में गिरा हूँ 'शहज़ाद' इस…
मौत की आहट सुनाई दे रही है दिल में क्यों क्या मोहब्बत से बहुत ख़ाली ये घर होने को है -परवीन शाकिर
दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका इस लिए ख़ोल से शमशीर नहीं खींच सका शोर इतना था कि आवाज़ भी डब्बे में रही भीड़ इतनी थी कि ज़ंजीर नहीं खींच सका हर नज़र से नजर-अंदाज़-शुदा मंज़र हूँ वो मदारी हूँ जो रहगीर नहीं खींच सका मैं ने मेहनत से हथेली पे लकीरें खींचीं वो जिन्हें…
मुझे उदास कर गए हो ख़ुश रहो मिरे मिज़ाज पर गए हो ख़ुश रहो मिरे लिए न रुक सके तो क्या हुआ जहाँ कहीं ठहर गए हो ख़ुश रहो ख़ुशी हुई है आज तुम को देख कर बहुत निखर सँवर गए हो ख़ुश रहो उदास हो किसी की बेवफ़ाई पर वफ़ा कहीं तो कर गए हो ख़ुश रहो गली में और लोग भी थे आश्ना हमें सलाम कर…
"अल्लाह न मिलने के बहाने थे हज़ारों मिलने के लिए कोई बहाना ही नहीं था"👌
ऐ वा'दा-शिकन ख़्वाब दिखाना ही नहीं था क्यूँ प्यार किया था जो निभाना ही नहीं था इस तरह मेरे हाथ से दामन न छुड़ाओ दिल तोड़ के जाना था तो आना ही नहीं था अल्लाह न मिलने के बहाने थे हज़ारों मिलने के लिए कोई बहाना ही नहीं था देखो मेरी सर फोड़ के मरने की अदा भी वर्ना मुझे…
शुभमन गिल की यह पारी महान पारियों में से एक के रूप याद की जाएगी! क्या सेंचुरी है! वाह!
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं कोई तो निकल आएगा सरबाज़-ए-मोहब्बत दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं कुछ देख रहे हैं दिल-ए-बिस्मिल का तड़पना कुछ ग़ौर से क़ातिल का हुनर देख रहे हैं पहले तो सुना करते थे आशिक़ की मुसीबत अब आँख से वो आठ पहर…
वो एक अक्स कि पल भर नज़र में ठहरा था तमाम उम्र का अब सिलसिला है मेरे लिए -Rajinder Manchanda Bani
मुझे पता था कि मेरी नियति पढ़ना, सपने देखना, और शायद लिखना होगा, लेकिन यह ज़रूरी नहीं था। और मैं हमेशा स्वर्ग की कल्पना पुस्तकालय के रूप में करता था, बाग के रूप में नहीं! -हॉर्जे लुई बोरहेस
चल दिए फेर कर नज़र तुम भी ग़ैर तो ग़ैर थे मगर तुम भी ये गली मेरे दिलरुबा की है दोस्तों ख़ैरियत? इधर तुम भी मुझको ठुकरा दिया है दुनिया ने मैं तो मर जाऊंगा अगर तुम भी -ज़ुबैर अली ताबिश
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए तलवार की मेयान कभी फेंकना नहीं मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आए कच्चा समझ के बेच न देना मकान को शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आए ऐसा भी हुस्न क्या कि तरसती रहे निगाह ऐसी भी क्या ग़ज़ल जो न गाने के काम आए…
कितना अच्छा लिखा है @drsureshpant सर ने
सुबह सुबह इतना सरस और पठनीय गद्य मिले तो क्या बात है। जानकारी से भरपूर। आपका होना हमारे लिए बड़ा सौभाग्य है। धन्यवाद @drsureshpant