Hemant
@hemant_dhand
कोमलं हृदयं यस्य कोमलं यस्य भाषणम्। दण्डोऽपि कोमलो यस्य कोमलाङ्गं नमाम्यहम्।।

स्वयं की अतः ईश्वराधीन। तो भला सृष्टिकर्ता ईश्वर, अपने द्वारा ही रचे गए प्राणियों को अपनी ही माया से भ्रमित कर क्या उपलब्धि करना चाहता है? ऐसा क्यों कि पहले तो मनुष्य को अपनी माया के द्वारा वश में करो, भ्रमित रखो, तत्पश्चात माया से मुक्त होने का मार्ग दो। लीला है? अगर है तो इस…
देखने में यह आता है कि इन आयोजनों के कारण अनेक कथाकारों, वाचकों, संतों आदि को भौतिक समृद्धि और प्रसिद्धि मिली है, दोनों ही इहलौकिक। इसके विपरीत धार्मिक अनुष्ठानों से भावशुद्धि किंवा साधन-शुचिता हो रही होती तो आयोजकों को अपने कार्य-व्यवसाय और लोकाचार में अनैतिक साधनों पर निर्भर…
धर्म सापेक्ष राजनीति जब राजनीति धर्म पर आक्रमण करती है तो संस्कृति ह्रास होने से सभ्यताओं का पतन होता है। अपि च यदि धर्माचार्य ऐसी कुत्सित विध्वंसकारी राजनीतिक दुष्परम्पराओं पर धर्म का अंकुश नहीं लगाते हैं तो निश्चय ही मानना चाहिए कि ऐसे धर्माचार्य राजनीतिक लाभ प्राप्त करने और…