Sarita Choudhary
@Saritanitharwal
Just another conscious glitch in your matrix.
सुप्रभात सभी को । कभी-कभी इतिहास में नाम उन्हीं का लिखा जाता है, जो दबाव में झुकते नहीं — भले ही पद छोड़ना पड़े। क्योंकि कुर्सियाँ मिलती हैं किस्मत से, मगर किरदार बनता है हिम्मत से।

ग़रीब और मासूम बच्चों को न्याय दिलाने के लिए — नरेश मीणा पहले ही झालावाड़ पहुँच चुके हैं, और निर्मल चौधरी भी अब आने वाले हैं!” सिस्टम को लहूलुहान कर देने वाले हादसे पर, छात्र नेता सड़कों पर हैं — और सत्ता के ठेकेदार ........@NirmlChoudhary
बच्चे मरें, छत गिरे, स्कूल ढहे, फिर कोई बाबू उठा कुर्सी से — “अब युद्धस्तर पर जानकारी जुटाओ!” वाह रे सिस्टम, जागने का स्टाइल भी वीआईपी है। उससे पहले तो सब “विकास” के भुट्टे सेंक रहे होते हैं। #शिक्षा_मंत्री_इस्तीफा_दो

इस्तीफ़ा माँग रहे हैं ये मासूम लोग…” अरे भाई , ये सियासत है, यहाँ इस्तीफ़ा नहीं, जाँच कमेटी मिलती हैं। बाक़ी भुट्टा खाना है तो बताओ? #शिक्षा_मंत्री_इस्तीफा_दो

छत नहीं गिरी थी, आसमान टूटा था” मरे जो बच्चे, वो सिर्फ़ गरीब थे, ना कोई रुतबा, ना मंत्री का करीब थे। कहाँ जाए अब मां-बाप रोते हुए, जिन्हें सौंपा था कल, आज वो ही सोते हुए। वो छत पुरानी नहीं थी, सियासत पुरानी थी, कुर्सियों पर अब भी बेशर्म कहानी थी। विधायक, सांसद, मंत्री सब मौन…

झालावाड़ के स्कूल की छत गिरी नहीं… पूरी सरकार ढह गई है। मरे हैं मासूम बच्चे, और नप गए सिर्फ पांच शिक्षक? तो क्या शिक्षक ही इंजीनियर थे? क्या वो बजट बनाते थे? क्या वो बिल पास करते थे? क्या वो मंत्री की कुर्सी पर बैठे थे? नहीं! वो तो बस उसी जर्जर छत के नीचे पढ़ा रहे थे जहाँ शासन…

छत गिरी ऊपर से, बच्चे मरे नीचे, और सज़ा मिली उन्हें — जो हर रोज़ उस ढही हुई इमारत में जान जोखिम में डालकर पढ़ाते थे। क्लासरूम के फर्श पर खड़े मास्टरसाहब ज़िम्मेदार बना दिए गए, मगर मंत्रीजी की कुर्सी पर अभी भी कोई खरोंच नहीं! क्या यही न्याय है? अगर शिक्षकों की निलंबन ही हल है…

छत नहीं गिरी थी, भरोसा गिरा था, बचपन नहीं मरा था, तुम्हारा ज़मीर मरा था। मंत्रीजी बोले — “जांच होगी”, जैसे जान की क़ीमत सिर्फ़ एक रिपोर्ट भर थी। बस्तों में किताबें नहीं, अब खून के धब्बे हैं, माओं की गोदें खाली हैं, और भाषण अभी भी बाक़ी हैं। “हादसे” कहकर पल्ला झाड़ोगे क्या? बोलो…

मासूम बच्चों के शरीर मलबे से निकले, और आप अब तक कुर्सी से नहीं निकले? क्या आपकी नैतिकता मर चुकी है? या कुर्सी में इतना गोंद लगा है कि ज़मीर हिलाने से भी नहीं हटते? इस्तीफ़ा दीजिए मंत्री जी #शिक्षा_मंत्री_इस्तीफा_दो
बस्ता वहीं छूट गया…” माँ ने सुबह प्यार से बस्ता बांधा था, पिता ने माथा चूमकर कहा था — “अच्छे से पढ़ना…” लेकिन दोपहर होते-होते, बस्ता मलबे में दबा मिला… और बच्चा — सफेद चादर में लिपटा। सरकार कहेगी — “यह एक हादसा था।” हम पूछते हैं — क्या ये सिर्फ हादसा था? या सुस्त और…



झालावाड़ की इस भयावह घटना ने पूरे राजस्थान को झकझोर दिया है, लेकिन सरकार अब भी प्रचार और पोस्टरबाज़ी में उलझी हुई है। बच्चों के चीखते-बिलखते परिवार सवाल कर रहे हैं — उनकी पुकार पर संवेदना कब जगेगी? ये कोई पहली या आकस्मिक दुर्घटना नहीं थी, ये नतीजा है — भाजपा सरकार के लापरवाह…
शिक्षा मंत्री जी — “क्या आपकी कुर्सी बच्चों की ज़िंदगी से ज़्यादा क़ीमती है?” आप इस्तीफ़ा कब देंगे? @madandilawar
जयपुर ने फिर लहराया भारत का परचम! Travel + Leisure की 2025 ग्लोबल रिपोर्ट में दुनिया के टॉप 5 टूरिस्ट शहरों में जयपुर विदेशी बोले – Taj Mahal, Bollywood, Curry! अब हम बोले – Hold my घेवर ।

सरकारी स्कूलों के बच्चे लिख रहे है कि कभी भी हादसा हो सकता है। और अब वही हुआ — छत गिरी, मासूम मरे, और फिर वही पुराना सरकारी ढर्रा: “हमने जांच के आदेश दे दिए हैं।” मंत्री जी, अब सवाल ये है — हादसे की नहीं, आपकी जांच कब होगी?”
इमारत गिरती है तो खबर बनती है, लेकिन जो सिस्टम अंदर से गिरा हुआ है — उसकी कोई ब्रेकिंग नहीं आती। 5 बच्चे नहीं गए, 5 भविष्य मिट गए। सरकार बोलेगी — “हादसा” हम पूछते हैं — “जिम्मेदार कौन?
इनका भाषा प्रेम भी मुंबई के मौसम जैसा है — जेब खाली हो तो ‘मराठी बोल!’ और जेब भरी हो तो ‘Hello sir, how are you!
इमारत गिरती है तो खबर बनती है, लेकिन जो सिस्टम अंदर से गिरा हुआ है — उसकी कोई ब्रेकिंग नहीं आती। 5 बच्चे नहीं गए, 5 भविष्य मिट गए। सरकार बोलेगी — “हादसा” हम पूछते हैं — “जिम्मेदार कौन?
वाह मोदी जी वाह!!! 200 साल पहले वो हमारे मसाले चुराकर ले गए, अब हम उन्हें पैक करवा के GST बिल के साथ बेचेंगे। अब लंदन की गलियों में राजस्थानी जूतियाँ, बनारसी साड़ियाँ और भुज की कढ़ाई बिकेगी — वो भी ‘Exclusively Made in Bharat’ टैग के साथ।”
